साहित्य धर्म दर्शन, संस्कृति सभ्यता परम्परा, नीति मूल्य व्यवहार के समवेत विधाओं में अपने अशेष अवदान से "स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्" को समग्रशः मूर्तमान करने वाले विद्याराज्ञी के इन अक्षयसुमेरुभूत आकाशधर्मा पूज्यगुरुवर के अवकाश ग्रहण करने के अवसर पर लगन, निष्ठा एवं कर्तव्यपरायणता की त्रिधारा को समर्पित आपके 45 वर्षों के सफल व अनिय सेवाकाल की स्मृतियों का अजस्र प्रवाह-मन व हृदय दोनों का आप्लावित कर देता है, आँखे नम हो जाती है, शब्द होठों तक आकर रुक जाते हैं, बोलना कठिन हो जाता है। ..अन्याय के प्रति आक्रोश, नीतिगत जीवन जीने का अभ्यास, अनवरत अडिग व काल निरपेक्ष रहते हुये संघ दर्शन की ओर सक्रियता, नित्य अध्ययनशीलता, अनुशासनप्रियता, मूल्यपरक राष्ट्रवादी चितंन, संवेदनशील रचनाधर्मिता, छात्रों के प्रति आत्मीयता जैसे उद्दाम पक्षों से परिपूरित एवं मानस व गीता के जीवनमूल्यों को समर्पित आपका सूर्य अनुगत व्यक्तित्व हम सबको नितनिरंतर प्राणोष्मता प्रदान करता रहा है और भविष्य में भी करता रहेगा। आपके स्वयंमेव निर्मित साहित्य-संस्कृति- समय सापेक्ष- सुधी व्यक्तित्व का ही प्रत्यक्षतः प्रतिफल है। कि आपको सभी का एवं सभी को आपका नितनिरंतर स्नेह मिलता रहा है जो विद्यालय परिवार में आपकी स्थायी उपस्थिति का आधार बनी हुई है और सदा सर्वदा बनी रहेगी।
हे महामना! "बुधालयो यः भुवि प्रसिद्धः" के रूप में ख्यात् तीर्थराज प्रयाग के प्रतापपुर विकास खण्ड के करूआडीह ग्राम के एक मध्यवर्गीय परिवार में आपका जन्म 12 जुलाई 1947 को हुआ। पिता श्री ब्रज मोहन द्विवेदी एवं माता श्रीमती चन्द्रकली देवी के वात्सल्यमयी संरक्षण में बुनियादी शिक्षा एवं प्रयाग विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक उपाधि अर्जन के पश्चात् 4 अगस्त 1965 को गंगा धार के इसी ख्यातिलब्ध संस्था में आपको शिक्षक नियुक्त किया गया, जो निःसन्देह शिक्षा, समाज एवं राष्ट्र के सापेक्ष, दूरदर्शी सिद्ध हुआ। वास्तव में माँ भारती के प्रति आपका अटूट अनुराग ही था कि "कानूनगों" जैसे प्रभावशाली सेवाओं के चयन को महत्व न देते हुए शिक्षा के क्षेत्र में सेवायोजन का संकल्प आपकी लोको मुखी, शुचितापूर्ण व अपरिग्रही विचारधारा का उल्लेखनीय पक्ष है। अध्यापन के साथ अध्ययन आपका प्रबलतम पक्ष रहा जिसका सुफल है कि आयुर्वेद विशेषज्ञता के लिए "आयुर्वेदरत्न" एवं दक्ष अध्यापन कौशल के लिए एल.टी. की उपाधि अर्जन के साथ ही आप हिन्दी व समाजशास्त्र विषय में परास्नातक है। आदर्श शिक्षक हिन्दी वाङ्गमय की ललित विधाओं पर साधिकार व्याख्यान की विलक्षणता, विषय का पांडित्यपूर्ण अद्यतन ज्ञान, सामयिक विषयों के प्रति संचेतना, उच्च सम्प्रेषण क्षमता, आपकी समर्थ गुरुता के सुयशता का विधायक पक्ष है। समय पालन का स्वभाव, छात्रों की शंका निवारण की प्रवृत्ति, छात्रों के ज्ञानात्मक अभिवृद्धि के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के आरेखन की क्षमता, छात्रों से पितृवत् वत्सलता, छात्रों से समायोजन की क्षमता, नियमित अध्ययन-अध्यापन, संगठित एवं मर्यादित जीवन शैली से छात्रों में आत्मानुशासन का प्रस्फुटन करने की क्षमता आपके उच्च शिक्षकीय मूल्यों का मूलमंत्र है जो ऐकान्तिक रूप से अनुग्राहय है अवश्य ही इसी समर्थ गुरुता से अभिभूत होकर 01 जुलाई 1982 को आप हिन्दी प्रवक्ता पद पर सुशोभित किये गये जो आपकी सुयोग्यता का अविच्छिन्न सम्मान था। इतना ही नहीं वरन् आधुनिक परीक्षा विशेषज्ञ के रूप में राज्य विज्ञान संस्थान की प्रदेश स्तरीय कार्यशाला में जीव विज्ञान के प्रश्नपत्र का आधुनिक प्रारूप का संयोजन न केवल हम सब के लिए अपितु जनपद के लिए गौरव का विषय बना। प्रखरवक्ता:- आवाज में आकाश का अवकाश, सघन धनवत् गम्भीर घोषत्व, समुद्रसदृश्य अर्थगाम्भीर्य जैसे उल्लेखनीय निकषों से युक्त आपकी अत्युत्तम वक्तृता शैली आपके तेजोदीप्त व्यक्तित्व में भव्यता का आधान करती रही है। प्रार्थना सभा के प्रेरक प्रसंगों का वाचन हो या अनेकानेक संगोष्ठियों एवं समारोहों का संचालन प्रत्येक संस्करणों में आपकी भाषा भाव व विचार की अतीव मोहक त्रिवेणी की कोई सानी नहीं है। "भाषा गिरा अनयन, नयन बिनु बानी" के तेवर की सार्थकता निःसंदेह आपकी वाक्शैली में ही मूर्त होती है जो सदा सर्वदा भावी पीढ़ियो के लिए अनुकरणीय रहेगी। वर्ष 1968 में आयोजित अखिल भारतीय प्रशिक्षण महाविद्यालय के समारोह के वाद-विवाद प्रतियोगिता में अद्वितीय व अविजित स्थान की अवप्राप्ति अवश्य ही आपकी इसी सुयोग्य समर्थता का अटल सम्मान था। हे संस्कृतिचेता! आपकी उर्वर रचनाधर्मिता का अविच्छिन्न प्रवाह कभी काव्य-रचना व काव्य पाठ में तो कभी सामयिक ललित निबंध लेखन में तो कभी सम्पादन जैसे श्रमसाध्य कार्यों में प्रस्फुटित हुआ। विद्यालय पत्रिका "कुमार गौरव" का सम्पादन व लेखन आपकी इसी दक्षता का क्रियामाणरूप है।
हे अत्युत्तमचेता! राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दर्शन एवं मूल्यों से अनुप्राणित आपकी दीर्घकालिक जीवन यात्रा वस्तुतः संघ के सैद्धान्तिक मूल्यों व विचारों का व्यवहारतः मूर्तमान स्वरूप रहा है जिसका अगुल्यानिदर्शन भी दुःसाध्य है। बाल्यकाल से सक्रिय स्वयं सेवक से लेकर काशी प्रान्त के प्रदेश मंत्री एवं सम्प्रति प्रान्तीय समिति के सम्मानित सदस्य के रूप में आपके व्यक्तित्व की विराटधर्मिता व सामाजिक सक्रियता न केवल हम सब के लिए उल्लेखनीय प्रत्युत निकषवत् साध्य बनी रहेगी।
विराट व्यक्तित्व:- मृदुतापूर्ण व्यवहार प्रसन्न मुखमंडल, दीपित ललाट, सबको सन्तुष्ट करने का ध्येय, सुख दुःख में सहभाग की प्रवृत्ति, स्वजनों से हास परिहास, सहजता, सौम्यता से परिपूर्ण आपके गरिमामयी व्यक्तित्व में चुम्बकीय आकर्षण का अनन्त प्रवाह है। स्वनामधन्यः- हे विमापुत्र! अपने व्यक्तित्व व कर्तृत्व से ओज एवं उर्जा के उतगातास्वरूप स्थापित आप सचमुच लाल जी द्विवेदी है। ऐसे प्राचीनता के पुरोधा नवीनता के उर्वर व्याख्याता, चेतना के चैतन्य, काव्यकीर्तिकेतन, ज्ञानरश्मिसंतति महामनामेधिर तथा परम्परा व आधुनिकता के विलक्षण सेतु स्वरूप महामनीषी का अन्तस्थल की गहराइयों से शत्-शत् अनन्त अभिनन्दन करते है और भविष्य में करते रहेंगें तथा हमसब आपके द्वारा स्थापित अनुगमनीय शैक्षिक मूल्यों एवं निकयों की सतत साधना का संकल्प लेते है। हम परमपिता परमेश्वर से प्राथना करते है कि आप दीर्घायु, स्वस्थ एवं सतत् सम्मानित हो। - देश में रहे परदेश में रहे काढू देश में रहें पर रावरे कहायेंगे के प्रेम भाव से आबद्ध आप प्रकाश स्तम्भ की भाँति हमारे पथ को सदैव आलोकित करते रहेंगें इसी कामना के साथ..
हम हैं. गोमती इण्टर कालेज फूलपुर के समस्त छात्र शिक्षक एवं कर्मचारीगण
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